कवरेज इंडिया न्यूज़ डेस्क
तीन जुलाई को मानेसर में हुई महापंचायत के बाद लगभग 300 मुस्लिम परिवार पलायन करके अपने गृह राज्य असम चले गए हैं। बचे हुए परिवारों में भी डर व्याप्त है। इस पंचायत में बिना पहचान पत्र व बिना पुलिस वेरिफिकेशन के रह रहे पूर्वोत्तर के मुसलमानों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने का निर्णय हुआ था। जिसके बाद से यह पलायन शुरू हुआ है।
इस बारे में पूछने पर मूल रूप से असम के बरपेटा जिले के रहने वाले नियामत अली ने बताया कि मानेसर में हुई महापंचायत के बाद लोगों ने काफी विचार-विमर्श किया और फिर पलायन का फैसला किया। अपना आधार कार्ड दिखाते हुए उन्होंने पलायन करने वाले परिवारों का दर्द बयां किया। नियामत ने बताया कि उनके पास आधार कार्ड है लेकिन पुलिस वेरिफिकेशन नहीं हो पाया है जबकि महापंचायत में बिना पुलिस वेरिफिकेशन के रहने वालों को वापस भेजने का फैसला किया गया है। इस समय मानेसर में करीब 8-10 अल्पसंख्यक परिवार ही रह गए हैं। वह भी ठेकेदार से अपने कबाड़ के पैसे लेने के बाद अपने राज्य लौट जाएंगे।
बंगाली बाजार में झोपड़ियों का समूह, प्रवासी मजदूरों के परिवारों का घर था। उनमें से अधिकांश आसपास की हाउसिंग सोसाइटियों में कचरा बीनने वाले और घरेलू सहायक के रूप में काम करते थे। इधर-उधर पड़ा कपड़ों का ढेर, बर्तन और एक जोड़ी स्पोर्ट्स शूज जल्दबाजी में घर छोड़कर जाने की गवाही दे रहे हैं। आस-पास रहने वाले अन्य लोगों ने कहा कि मुस्लिम परिवार जिनमें ज्यादातर असम के है, महापंचायत के बाद से ही डर में जी रहे थे।
छत्तीसगढ़ की रहने वाली 45 साल की महिला बिमला यादव जो पास में रहकर घरेलू सहायिका का काम करती है ने कहा, 'वे रातों-रात यहां से चले गए। मैंने यह कहते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की कि इस तरह जाने का कोई कारण नहीं है। लेकिन उन्होंने असम वापस जाने की ठान ली थी।' दूसरे पड़ोसी ने कहा, 'मुझे यहां काम करने के लिए बंगाल से आए अभी दो महीने ही हुए हैं। ईद के बाद मैंने कुछ परिवारों को जाते हुए देखा। मुझे कारण नहीं पता। वे सब चुपचाप चले गए।'
जिस जमीन पर झोपड़ियां बनाई गई हैं उसके मालिक सतपाल हरिद्वार में थे, जब उन्हें फोन आया कि किराएदार पैकिंग कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया कि वे महापंचायत के बाद डर गए थे। मैं उनमें से किसी से भी बात नहीं कर सका। जो लोग गए वे सभी असम के थे।' बता दें कि पिछले दिनों मानेसर के एक मंदिर में महापंचायत का आयोजन किया गया था। जहां बजरंग दल और कई अन्य हिंदू संगठनों के सदस्यों ने मुस्लिम दुकानदारों के बहिष्कार का आह्वान किया और मांग की कि प्रशासन उनके दस्तावेजों की जांच के लिए अभियान चलाए।