कवरेज इंडिया न्यूज़ डेस्क
जिस तरह से गुलाम नबी आजाद ने पांच पेज की चिट्ठी लिख कर कांग्रेस से आजादी पा ली है और तमाम सारी कवायदों व कयासों को जन्म दे दिया है। भले ही आजाद ने अपने नेतृत्व की तीन पीढ़ियों को अपने इस्तीफे के लिए जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके इस्तीफे के लिए पीएम मोदी के प्रति उनकी आस्था है,जो बीते वर्ष 9 फरवरी 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी संसद से विदाई के समय दी थी। तब पीएम मोदी इतने भावुक हो गये थे कि उनकी आंख में आंसू आ गये थे,लेकिन तब किसको पता था कि इन आंसुओं की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ेगी और इससे पिघलेंगे गुलाम । दरअसल यह भाषण गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से विदाई के दौरान दिया गया था। इस भाषण में पीएम मोदी ने कश्मीर में आई बाढ़ में फंसे गुजरात के लोगों का रेस्क्यू करने के लिए उन्हें धन्यवाद किया था। अंत में भाषण को समाप्त करते हुए पीएम मोदी काफी भावुक हो गए थे और उन्होंने गुलाम नबी आजाद को सदन में सबके सामने सलूट किया था । मोदी ने तब यह कहा था कि आपके लिए मेरे द्बार हमेशा खुले रहेंगे। अनुभव बहुत काम आता है। आपको मैं निवृत्त नहीं होने दूंगा। तभी यह कयास लगाये गये थे लेकिन समय आते-आते इस पर चर्चा बंद हो गयी। लेकिन जब मामले पर धूल पड़ने लगी तो गुलाम नबी आजाद ने अपनी पुरानी पार्टी की तीन पीढ़ियों पर ऐसे-ऐसे आरोप गढ़े,जिसकी कम से कम उनसे तो उम्मीद नहीं थी,क्योंकि उन्होंने उन इंदिरा गांधी को भी नहीं बख्शा, जो यह कहते नहीं थकती थीं कि उनके तीन बेटे हैं- राजीव,संजय और गुलाम नबी आजाद।
गौरतलब है कि आगामी दिसंबर से लेकर मार्च 2023 के बीच जम्मू कश्मीर में चुनाव कराया जाना तय है। धारा - 370 हटने के बाद जम्मू में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जिसके लिए भाजपा किसी तरह का रिस्क लेने को तैयार नहीं हैं। धारा-370 हटने के बाद अगर भाजपा किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी तो यह संदेश जायेगा कि 370 हटना जम्मू के लोगों को ही पंसद नहीं आया इसीलिए भाजपा वहां फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। गुलाम नबी आजाद इसी श्रृंखला की अहम कड़ी हैं। गुलाम को भी लगता है कि वह कांग्रेस में रहे तो गुलाम ही रह जायेंगे। इसीलिए कहा जा रहा है कि उन्हें भाजपा हाईकमान की ओर से इस आशय के पुख्ता संदेश मिल गये हैं कि अगर भाजपा सरकार वहां बनती है तो उनके सिर पर ताज सज सकता है। इसीलिए गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से आजादी पाने में तनिक भी देर नहीं लगायी। जिस दिन आजाद ने इस्तीफा दिया,उस दिन भाजपा अपने संगठन को मजबूत करने और आजाद के कांग्रेस से बाहर होने के कारण पैदा हुए शून्य को भरने की रणनीति बनाने में लग गई। पार्टी की जम्मू-कश्मीर इकाई के कोर ग्रुप ने शुक्रवार शाम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर उन क्षेत्रों पर रणनीति बनाने के लिए बैठक की जहां पार्टी खुद को मजबूत कर सकती है। बैठक चार घंटे तक चली।
भाजपा को लगता है कि कांग्रेस के कमजोर होने से बीजेपी को जहां भी जगह मिलेगी,फायदा होगा। मुकाबला आजाद की नई पार्टी,राकांपा और पीडीपी के बीच होगा। ये सभी अपने विशिष्ट वोट आधार को लक्षित करेंगे। भाजपा के पास कांग्रेस के मतदाताओं को लुभाने का मौका होगा,जो पीडीपी या अन्य क्षेत्रीय दलों को कभी वोट नहीं देंगे। गुलाम नबी आजाद, फारूक अब्दुल्ला की पार्टी के विकल्प के रूप में उभर सकते हैं,क्योंकि दोनों की छवि नरम राष्ट्रवादी की है। साथ ही,अब्दुल्ला ईडी जांच का सामना कर रहे हैं और यहां एक अफवाह है कि दिल्ली में बीजेपी से उनकी कुछ सेटिग है,उन्हें इसका नुकसान हो सकता है।
एक और फायदा जो बीजेपी देख रही है, वह यह है कि चुनाव एकतरफा नहीं होगा। चुनाव में कई खिलाड़ी होंगे और इससे यह सुनिश्चित होगा कि चुनाव पूरी तरह से एक पार्टी के पक्ष में नहीं होंगे। आजाद के कांग्रेस से बाहर निकलने और इस खुलासे से कि वह अपना खुद का राजनीतिक संगठन लॉन्च करेंगे,ने भाजपा को उम्मीद दी है। 2014 के चुनाव में जब जम्मू.कश्मीर और लद्दाख एक साथ मिलकर पूर्ण राज्य थे,कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने 25 सीटें।
ऐसे में अगर आजाद की नयी पार्टी कुछ सीटें लाने में कामयाब हो जाती है तो बेशक वे सीएम न बन पायें लेकिन किंगमेकर बनने में जरूर कामयाब हो जायेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। कश्मीर में आजाद का अपना अलग सियासी वजूद है और उसका असर भी देखने को मिल रहा है। उनके समर्थन में प्रदेश के छह पूर्व विधायकों ने भी कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर आजाद का दामन थाम लिया। कहा जा रहा है कि आजाद के साथ जम्मू के कई ओर नेता पार्टी को अलविदा करने वाले हें। जो यह कह रहे हैं कि गुलाम कश्मीर में पिटे हुए मोहरे साबित होने वाले हैं,उनका ये आकलन गुलाम जल्द ही गलत साबित करने वाले हैं। उनकी पहचान हमेशा ही कश्मीर के एक सुलझे हुए नेता की रही है। भाजपा इसी कोशिश में थी गुलाम का फायदा कांग्रेस को न मिले और वह फिलहाल इसमें कामयाब रही है। अब आजाद को भी उम्मीद जगी है कि वह भाजपा के सहयोग से गुलाम से राजा बन सकेंगे।