कवरेज इंडिया न्यूज़ डेस्क प्रयागराज
यूपी का प्रयागराज जनपद जो उस वक्त इलाहाबाद हुआ करता था। इलाहाबादी भौकाल भी लोगों के सिर चढ़कर बोला करता था, बोले भी क्यों ना ? प्रयागराज में एक से बढ़कर एक बाहुबली हुए। यहां बात कम होती थी और बम पहले चल जाता था। यहीं एक नेता अपनी सियासी जमीन मजबूत कर रहा था। नाम था जवाहर पंडित। जवाहर पंडित का असल नाम जवाहर यादव था, लेकिन देवी मां के भक्त जवाहर घंटों पूजा करते थे। माथे पर चंदन तिलक लगाए जवाहर यादव को लोग पंडित के नाम से बुलाने लगे थे। जवाहर मूल रूप से जौनपुर के थे, लेकिन 80 के दशक में वह नौकरी करने प्रयागराज आ गए थे।
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शुरुआत में जवाहर अनाज मंडी में बोरा सिलने का काम करते थे फिर शराब के धंधे में आ गए। इसी बीच उनकी मुलाकात मुलायम सिंह यादव से हुई और वह पहली ही मुलाकात में मुलायम की नजर में चढ़ गए। 1991 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो वह विधानसभा चुनावों में जवाहर पंडित को टिकट देना नहीं भूले। जवाहर, झूंसी से लड़े लेकिन कम अंतर से हार गए। इसके बाद 1993 के चुनावों में यह मलाल ख़त्म हो गया और झूंसी से खड़े जवाहर ने करीब 27 हजार के बड़े मार्जिन से चुनाव जीता।
1993 का चुनाव जीता और बालू पर नजर पड़ गई
1991 में सपा के टिकट पर झूंसी सीट से जवाहर पंडित ने चुनाव लड़ा और हार गए। लेकिन क्षेत्र में लगे रहे। नतीजा ये हुआ कि 1993 में 26,841 वोटों के बड़े मार्जिन से चुनाव जीत लिया। यहां से जवाहर पंडित की ताकत बेहिसाब बढ़ गई। जिसे चाहते उसे ठेका दिलवाते। इसी दौरान जवाहर पंडित यमुना के घाटों की बेशकीमती बालू पर पड़ी। लेकिन वहां तो पहले से ही बाहुबली करवरिया परिवार का कब्जा था। मतलब ये कि एक मगरमच्छ के रहते हुए दूसरा मगरमच्छ उसी तालाब में कूद पड़ा।
करवरिया खानदान से सीधी भिड़ंत
जवाहर पंडित अब मामूली इंसान नहीं थे। माननीय थे। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के खासमखास। पार्टी को मोटा फंड देने वाले। पहुंच गए। बालू के घाट पर। वहां पर सारा कब्जा श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला महाराज का था। दो लाइन में पहले इनके बारे में जान लीजिए।
मौला महाराज के पिता जगत नारायण करवरिया का कौशांबी में बड़ा मान सम्मान था। दबंग छवि मानी जाती थी। मौला महाराज अपने भाई विशिष्ट नारायण करवरिया उर्फ भुक्खल महाराज के साथ प्रयागराज आकर बस गए। रियल स्टेट के कारोबार में अपना सिक्का जमाया। जब यह कारोबार जम गया तब नजर पड़ी बालू के धंधे पर। सरकार में जुगाड़ लगाया और बालू निकालने का ठेका ले लिया। देखते ही देखते करवरिया परिवार बालू का सबसे बड़ा डीलर बन गया। अब फिर से विषय पर लौटते हैं।
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1993 में जवाहर पंडित विधायक बने। जिसकी सत्ता उसका ठेका वाला वसूल लागू हुआ। जवाहर ने एक के बाद एक सारे ठेके खुद के नाम करवा लिया। करवरिया के पास घाट तो थे पर रास्ता खत्म हो गया। ट्रक जवाहर पंडित की जमीन से गुजरा तो रोक दिया गया। दोनो पक्ष समझौते के लिए साथ बैठे। इस दौरान समझौता छोड़िए विवाद और बढ़ गया। जवाहर पंडित ने मौला महाराज पर रायफल तान दी। कहा, “अपनी बालू चाहे तो हेलीकॉप्टर से उठवाओ लेकिन मेरी जमीन से तुम्हारा एक भी ट्रक नहीं गुजरने दूंगा”
बस इसी के बाद जवाहर पंडित का बालू खदानों पर एकक्षत्र राज हो गया। करवरिया परिवार इस कारोबार से पूरी तरह से आउट हो गया। लेकिन उसके दिल में बदले की ज्वाला भड़क रही थी। बस सही समय का इंतजार था। 1995 में सपा-बसपा में विवाद हो गया। सरकार गिर गई। राष्ट्रपति शासन लग गया। जवाहर पंडित की सुरक्षा वापस हो गई। इसी को मौका माना और 13 अगस्त 1996 को जवाहर पंडित की गोली मारकर हत्या कर दी।
यह पहली बार था जब प्रयागराज का सिविल लाइंस इलाका एके-47 की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था। इस हत्याकांड में ड्राइवर गुलाब यादव सहित जवाहर पंडित की मौत हो गई, लेकिन एक साथी कल्लन चमत्कारिक रूप से बच निकला।
इस हत्या का आरोप सूरजभान, उदयभान और कपिलमुनि करवरिया सहित परिवार के पांच सदस्यों पर लगा। 23 साल तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने चर्चित जवाहर पंडित हत्याकांड में फूलपुर के पूर्व बीएसपी सांसद कपिलमुनि, पूर्व एमएलसी सूरजभान और पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को उम्रकैद की सजा सुनाई।