}(document, "script")); भविष्य में जिंदा होने की तकनीक आने की आस के साथ इस कंपनी के पास लोगों ने सुरक्षित कराए 200 शव, एक शव का खर्चा 1.65 करोड़

भविष्य में जिंदा होने की तकनीक आने की आस के साथ इस कंपनी के पास लोगों ने सुरक्षित कराए 200 शव, एक शव का खर्चा 1.65 करोड़


कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो

फीनिक्स । अमेरिका के एरिजोना की एक लैब में 200 शव व मस्तिष्क तरल नाइट्रोजन में जमा कर रख दिए गए हैं, इस उम्मीद में कि भविष्य में अगर कोई ऐसी तकनीक विकसित हुई जो मरे हुए को जिला दे, तो इन मृतकों को फिर से जीवन मिल जाएगा। यानी मौत के बाद जिंदा होने की सूरत में वे अपने कई पीढ़ियों बाद के वंशजों से मिल सकेंगे।

क्रायोजेनिक प्रणाली से शरीर को संरक्षित रखने के लिए एक अमेरिकी कंपनी 2 लाख डॉलर (1.65 करोड़ रुपये) ले रही है। हालांकि वैज्ञानिकों का साफ कहना है कि भविष्य में मृत लोगों को जिंदा करने वाली किसी तकनीक के खोजे जाने की संभावना न के बराबर है । अमेरिकी कंपनी अल्कोर लाइफ एक्सटेंशन फाउंडेशन लोगों को जिंदा करने की तकनीक मिलने तक शवों को सुरक्षित रखने का दावा कर रही है। कंपनी की लैब में शवों को एक सिलिंडर में नाइट्रोजन, बर्फ और बेहद ठंडे पानी के पाइपों के साथ रखा जाता है। इतने ठंडे तापमान पर कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं ।

यहां रखे शवों में दो साल की एक थाई बच्ची का शव भी है, जिसकी मृत्यु ब्रेन कैंसर से हुई । परिवार को उम्मीद है कि शायद फिर कभी उसे जीवित कर पाएं और साथ जी सकें। उन्होंने अपने शरीर भी इस कंपनी को देने का करार कर रखा है। 

पैकेज उम्र के अनुसार

यह लैब चलाने वाली कंपनी अल्कोर लाइफ एक्सटेंशन फाउंडेशन भविष्य की तकनीकों पर दांव लगा लोगों को कई प्रस्ताव दे रही है। जो पूरा शरीर सुरक्षित नहीं करवाना चाहते, केवल दिमाग को ही काफी मानते हैं, उन्हें 66 लाख रुपये यानी काफी कम भुगतान पर दिमाग को बर्फ में जमा कर सुरक्षित रखने का वादा कर रही है। वहीं 18 साल का कोई व्यक्ति अपना शरीर सुरक्षित रखना चाहे तो उसे कंपनी का सदस्य बन कर सालाना 200 डॉलर ताउम्र देने होंगे। उम्र बढ़ने के साथ यह शुल्क भी बढ़ता जाता है। कोई गैर सदस्य कंपनी की सेवा अपने किसी प्रियजन के लिए लेना चाहे तो उसे एकमुश्त करीब 16 लाख रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे। अमेरिका व कनाडा के बाहर से शव लाने पर 8 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च आएगा।

यह होती है प्रक्रिया : शव को कंपनी से जुड़े डॉक्टर अपने कब्जे में लेते हैं। शव से सारा रक्त व द्रव्य बाहर निकाल लेते हैं और एंटी-फ्रीज पदार्थ भरते हैं। इससे जमाते समय कोशिकाओं में क्रिस्टल नहीं बनते, जो उन्हें नष्ट होने से बचाता है।

लेकिन वैज्ञानिक न सहमत, न खुश : कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के बायोलॉजिस्ट डॉ. माइकल हैंडरिक ने इस बारे में लिखा कि व्यक्ति की चेतना को खत्म होने के बाद उसे फिर से उसी रूप में बनाना असंभव है। इस चेतना को बनाने वाला नर्वस सिस्टम ही इतना जटिल होता है कि इसकी नकल नहीं हो सकती। वे तीन अहम बाधाएं बताते हैं, पहली, कि आज जिस ढंग से शरीर व मस्तिष्क को फ्रीज किया रहा है, क्या उससे जरूरी चीजें बची रह पाएंगी? दूसरी, यह चीजें, या कहें व्यक्ति की यादें रिकवर कैसे होंगी? और तीसरी, पहली दोनों बातें हो भी गई, तो इनसे जो व्यक्ति बनेगा, क्या वह सच में वही होगा जिसका शव सुरक्षित रखा गया? यह प्रश्न 'मैं' का है, क्या भविष्य का वह व्यक्ति वही रहेगा? उसका व्यक्तित्व, आदतें, विचार, सोच, इंद्रियां, संवेदना, निर्णय क्षमता, स्वभाव, मूड, यह सब बेहद छोटी-छोटी नर्व कोशिकाओं के बेहद जटिल आपसी कनेक्शन तय करते हैं। आज कोई भी ऐसी तकनीक नहीं, जो इन्हें पूरी तरह संरक्षित रख सके।

उम्मीद अपनी अपनी: मूर के अनुसार जिन्होंने शव संरक्षित थी कि जब कोई आधुनिक तकनीक आएगी उन्हें सशरीर फिर से जीवन जीने को मिलेगा। जिन्होंने केवल मस्तिष्क संरक्षित करवाएं, उन्हें उम्मीद है कि शायद मस्तिष्क में मौजूद उनकी यादें और जीवन से जुड़ी बातें किसी कंप्यूटर प्रोग्राम में अपलोड करने की तकनीक तैयार हो जाए। वे आभासीय या कृत्रिम वास्तविकता में अपना जीवन जी सकेंगे। खुशकिस्मत रहे तो उनका मस्तिष्क किसी और शरीर या कृत्रिम शरीर में फिट करने की तकनीक भी आ सकती है। उम्मीदें बेच रहे मूर लोगों को लुभाने के लिए स्टेम सेल तकनीकी के बारे में बताते हैं।


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