कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो प्रयागराज
इलाहाबाद के नहीं थे पर इलाहाबाद के हो गये। ऐसे थे कैलाश गौतम, इलाहाबाद के गौरव। एक ठहाका। एक भयंकर गूंज। आकाशवाणी में दहाड़ मारने वाला शेर। गंवई रंगत में रंगा यह साहित्य का वीर जवान। देशी छवि कोई बनावटी नहीं। रूप रंग मतवाला था इसलिए बैरी भी उनका गुणगान करने लगता था।
इलाहाबाद में जब खिलखिलाते थे तो पूरे हिन्दुस्तान में गूंज सुनाई देती थी। यही है कैलाश गौतम की सादगी। साहित्य का महारथी। उनकी मृत्यु पर पूरा साहित्य कुछ समय के लिए ठहर सा गया था। आज उनकी पुण्यतिथि है। ऐसे हस्ताक्षर को नमन।
उनकी रचनाओं में आमजन की बात थी। गांव देहात का दुख दर्द था। वेदना था। किसानों के हालत पर दुखी होते थे। समाज के विसंगतियों पर करारा व्यंग्य। गंवई रचनाओं में सब सच्चाई कह देते थे।
उनका कार्यक्रम आकाशवाणी पर जब आता था तो एक घंटे पहले रेडियो खुल जाता था। उनकी बातें सुनने के लिए हमने उधार लेकर रेडियो खरीदा था। बड़ा मजा आता था जब रेडियो पर उनका कार्यक्रम होता था। बांधकर रखते थे श्रोताओं को। एक बार जो उनका सुन लेता था उनका मुरीद होकर रह जाता था।
कवि सम्मेलन की जान थे। इलाहाबाद का कोई कवि सम्मेलन उनके बगैर नहीं होता था। साहित्य का लाडला जब माइक पकड़ता था। पंडाल तालियों से गूंज उठता था। शेर की दहाड़ थी। बातों में रस भरा था। नयापन था उनकी कविताओं में। अखबारों की सुर्खियां बन जाते थे। ऐसे थे हमारे कैलाश गौतम।
शत शत नमन 🙏🏽🙏🏽🙏🏽
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