}(document, "script")); सद्गतिदायनी माँ गंगा की दुर्गति क्यों - आचार्य धीरज "याज्ञिक"

सद्गतिदायनी माँ गंगा की दुर्गति क्यों - आचार्य धीरज "याज्ञिक"



कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो प्रयागराज 

माँ गंगा के अवतरण दिवस गंगा दशहरा पर हरिद्वार,काशी,प्रयाग सहित देश के सभी गंगा घाटों पर सरकार,हिन्दू संगठनों,तीर्थ पुरोहितों तथा आम जनमानस द्वारा दस दिवसीय,एक दिवसीय धार्मिक आयोजन किया गया भक्तों खूब स्नान दान,पूजन किया करना भी चाहिए क्योंकि पुण्य सलिला माँ गंगा जी का महात्म्य अनिर्वचनीय है।गंगा जी का अवतरण पाप नाश तथा परोपकार के लिये हुआ है।गंगाजल वाकई में अमृत है,हिमखंडों से सतत प्रवाहित जल वनौषधियों का सार ग्रहण कर कीटाणु रहित माना जाता है।

धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि गंगास्नान से कई जन्मों के पाप ताप नष्ट हो जाते हैं तो क्या वास्तव में हम इसी आस्था से गंगास्नान,दान,पूजन, धार्मिक आयोजन करते हैं? 

यदि हाँ तो आइए स्वयं से कुछ प्रश्न करें व इनके उत्तर ढूँढे-

1- यदि गंगा हमारी माता हैं तो इतने समझदार होकर भी हमारे द्वारा उनके आँचल (तटों) में मल मूत्र त्याग क्यूँ?

2- यदि गंगा में स्नान से सारे पाप कर्मों का क्षय होता है तो गंगा में नाले प्रवाहित कर हम उनकी ही क्षय करने पर क्यों उतारू हैं?

3- गंगा तट पर मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के साथ मृत व्यक्ति की दवाओं,बिस्तर,एक्सरे और कपड़ों का विसर्जन कहाँ तक उचित है?

4- गंगा जी मन का मैल धुलने के लिए हैं कि आपके कपड़ों और शरीर की?

5- एक देव के पूजन के बाद अवशेष सामग्री गंगा जी में डालना कहाँ का विवेक है?

6- जिस गंगा में हम पाप धोने जाते है उसी गंगा में दातून,ब्रश करना,दंतधावन,पानी मे कुल्ला करना, थूकना,प्लेट,पॉलीथिन फेकना,मुंडन के बाद उतरे केशों को गंगा मैया में डालना क्या जीवनदायिनी के साथ हमारी कृतघ्नता नही है?

इसपर विचार करके ही हम माँ गंगा का अवतार दिवस गंगा दशहरा का पर्व मनाने और माँ गंगा के प्रति भाव पुष्प अर्पित करने के अधिकारी हैं। 

आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक"

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